खोजें अपनी खोई ज़िंदगी | Sudhanshu Ji Maharaj

खोजें अपनी खोई ज़िंदगी

खोजें अपनी खोई ज़िंदगी

यदि हम जिन्दगी को महत्वपूर्ण बनाना चाहते हैं, तो इसके अंदर जो सोई हुई ऊर्जा है उसे जगाना होगा। जगाने के लिए जिन्दगी गुजारनी नहीं, जिन्दगी जीनी पड़ती है। बहुत से लोग दुनिया में इस तरह के हैं, जो 20-22 साल तक की ही उल्लास भरी जिन्दगी जी पाते हैं, उसके बाद सांस लेने वाले मुर्दे बनकर जीते हैं, जबकि उनका अंतिम संस्कार 70-80 साल की उम्र में जाकर होता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि उनकी जिन्दगी कहीं खो जाती है, जिन्दगी का होश चला जाता है। जिन्दगी के खोने का मूल कारण बनता है उसका मैं। वास्तव में जो व्यक्ति अपने को खोकर अपनी ‘‘मैं’’ का प्रदर्शन करने में लग जाते हैं, उनकी जिन्दगी जीवन से गायब हो जाती है।

   इसलिए जब कोई व्यक्ति जीवन के बोझ से मुक्त होने के लिए परमात्मा के मार्ग पर चलने के लिए अग्रसर होता है, संत-गुरु के सान्निध्य में आता है, तो उसे प्रदर्शन नहीं दर्शन की ओर यात्र शुरू करनी पड़ती है, वासना को उपासना की ओर, चिंता को चिन्तन की ओर मोड़ना पड़ता है। जिससे वह अपनी जिन्दगी से जुड़ सके। जीवन से जुड़कर ही आध्यात्मिक यात्र की शुरुआत मानी जाती है। इस माध्यम से व्यक्ति का विषाद-प्रसाद में, तीव्र इच्छा शक्ति संकल्पों में और जीवन के कर्म-सुकर्म में, आचरण-सदाचरण में, विचार-सद्विचार और उसके पद-सुपद में, संगति सुसंगति में बदलने लगती है। यह आध्यात्मिक यात्र की शुरुआत भी है और जीवन को खोजने का व्यावहारिक विज्ञान भी।

   कई साधक कहते सुने जाते हैं कि हम कैसे मानें भगवान के करीब पहुंचे हैं, उसकी कृपा के पात्र बन रहे हैं। नियम निभाते-निभाते, माला जपते-जपते असंख्य दिन हो गये, पर कुछ बात बनी कि नहीं बनी कैसे पता लगे? ऐसे सोचने वालों के लिए हम एक ही बात कहेंगे कि उन्होंने केवल बाहरी कर्मकाण्ड पर ध्यान दिया है। यदि वास्तव में जीवन को खोजना चाहते होंगे, तो सोचने का, अनुभूति का तरीका ही बदलना पड़ेगा। वास्तव में यह सब करते हुए जब किसी दुःखी को देखकर तुम्हारा हृदय पिघलने लग जाये और दूसरों की पीड़ा अपनी पीड़ा बन जाये, दुष्टता के सामने जब सिर उठाने और सज्जनों के सामने सिर झुकाने का विचार आने लगे अपने हिस्से में से दूसरों को देने के लिए मन तड़पने लगे, तो समझ लें कि परमात्मा की कृपा होने लगी है। जिन्दगी भी पकड़ में आने लगी है। जिसके जीवन से ये श्रेष्ठ सेवा, करुणामय भाव जुड़ने लगे, समझें उसके साथ उसका परमात्मा शामिल हो गया। तब परमात्मा की अनन्त शक्तियां-अनुभूतियां भी प्रवेश करने लगेंगी। जिन्दगी भी उसी क्षण बदलने व पकड़ में आने लगती है। आइये! हम सब अपनी जिन्दगी की खोज में लगें।

 

Leave a Reply